Monday, 19 December 2016

अनुभूति का आवरण

 मैं जो देखता हूँ क्या वो सच है? अद्वैत वेदांत के अनुसार जगत मिथ्या है।  ब्रह्मा एकमात्र सत्य है। जिस प्रकार  रस्सी भ्रम से सर्प प्रतीत होता है  उसी प्रकार यह जगत  भूलवस् माया स्वरूप जान पड़ता है।  जगत एक आवरण है पर उस आवरण के पीछे क्या है हमें पता नहीं।  पाश्चात्य दार्शनिक कान्त कहता है कि हमे वस्तुओं के   प्रतिभास मात्र का अनुभव है, यथार्थ वस्तुओं की न  प्रतिभूति है न क्षमता।

यह आवरण क्या है जिसके पीछे यथार्थ जगत छिपा है ? यह  आवरण है हमारी अनुभूति। जिस जगत की हमें समझ वह  जगत हमारे अनुभव का  परिणाम है पर हमारा अनुभव व्यक्तिपरक है। हमारा अनुभव हमारे संवेदना का परिणाम है।  वस्तुओं के प्रति हमारी संवेदना शक्ति विभिन्न है अतः जगत के प्रति हमारी आत्मनिष्ठ  समझ भी  विभिन्न है। पर जगत विभिन्न कैसे  सकता है ? जगत तो एक ही है।  फिर मेरा संसार आपके  संसार से अलग कैसे ? अगर मेरे पास आंखे नहीं  होती तो मेरा संसार आपके संसार से काफी अलग होता।  मेरे संसार में वस्तुओं का रंग नहीं होता उनका स्वाद और स्पर्श होता। क्या मैं अपने संसार  को कम वास्तविक मानता ? मगर , तब आप कहते की मेरा संसार अधूरा है। पर क्या आपका संसार पूर्ण है ? क्या आपका संसार यथार्थ है? 

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